योगर्षि श्रीकपिल चालीसा

-: ध्यान :-
ध्यान धरूँ गुरुदेव चरण
कमल विमल अवतार ।
योगर्षि श्री कपिल देवर्षि
कलि मल तारणहार ॥

यशोगान गाते गुरुवर की ।
वीतराग संन्यासी प्रवर की ॥1॥

मिथिला धाम मधेपुर वासी ।
कानन - मंडप तेज प्रकाशी ॥2॥

श्री बलवीर मिश्र कुलदीपक ।
मां संझा के प्रेमोद्दीपक ॥3॥

शाकलद्वीपीय ब्रह्मण वंशी ।
पुण्डारक कुल मुदगल अंशी ॥4॥

उन्नीस शत इक्यावन ईसवी ।
मास अगस्त एकादश की तिथि ॥5॥

धवल दिवस दोपहर दो बजे ।
प्रभु के परिकर धरा विराजे ॥6॥

उर्ध्वनयन शिशु श्याम मनोहर ।
दीर्घबाहु नासिका नयन हर ॥7॥

रक्तिम अधर कपोल सुकोमल ।
हृष्ट पुष्ट सब विधि तन मन बल ॥8॥

शैशव वय से प्रभु अनुरागी ।
बाल कृष्ण संग क्रीड़ाकारी ॥9॥

तीर - धनु, रथ - ज्योति पालकी ।
शयन समय करते नित झाँकी ॥10॥

यज्ञोपवीत धरे ब्रह्मचारी ।
गुरु फकीर के आज्ञाकारी ॥11॥

गायत्री गीता स्वाध्यायी ।
शालिग्राम शिला अनुयायी ॥12॥

भक्ति करते हर - शक्ति की ।
राम - कृष्ण बजरंगबली की ॥13॥

विद्यालय छुप पढते गीता ।
सांख्य मनन में बचपन बीता ॥14॥

यद्यपि सकल कथा अनुरागी ।
राम कथा शर शीघ्र ही लागी ॥15॥

पाणिचिन्हविद बने निष्णात ।
पूर्वजन्म गुण चीन आयात ॥16॥

एक इसाई धर्म उपदेशक ।
मिले किशोर में दिए थे पुस्तक ॥17॥

पढते ही हो गये स्तंभित ।
हृदय मध्य प्रभु हुए अवतरित ॥18॥

शूली चढे प्रभु ईसा विकल थे ।
परदुखहारी समाधि सकल थे ॥19॥

तीन लोक पसरा संदेश ।
फिर उद्धारक भारत देश ॥20॥

निज - पर - कुल के पितृ अनेक ।
गति हेतु आये सर टेक ॥21॥

अद्योगति के जो अधिकारी ।
पाप मूर्ति जो दुष्ट विकारी ॥22॥

करते नानाविध उत्पात ।
करें दयानिधि करुणापात ॥23॥

एक पिशाच जो सुअर वेश में ।
बना था पीड़ा उदर - क्लेश में ॥24॥

चक्र सुदर्शन से हो खंडित ।
गति पाय हुआ महिमामंडित ॥25॥

युवाकाल गए रजधानी ।
मिले नृपति नीति निर्माणी ॥26॥

सहज उदार श्रद्धालु दानी ।
पूजित भये प्रभु निर्मानी ॥27॥

गए तीर्थ बहु बारंबार ।
गंगोत्री से गंगसंहार ॥28॥

बदरी केदार कभी अमरनाथ ।
वैष्णो देवी कभी जगन्नाथ ॥29॥

वृन्दावन जाते बार बार ।
बरसाना ॠषिकेस हरद्वार ॥30॥

सांख्य योग वेदांत धारणा ।
मधुर भाव वैदिक उपासना ॥31॥

करगत सहज हुई सब सिद्धि ।
पंचतत्व और भाव की शुद्धि ॥32॥

करते सप्तलोक के दर्शन ।
नर्क स्वर्ग मही का विचरण ॥33॥

करने दुख का मूल हरण ।
किए मसीहा नर्क गमन ॥34॥

परहित कारण भोगे क्लेश ।
असुर यंत्रणा अहो ! अशेष ॥35॥

करके पूजन मख अभिषेक ।
तारे मृतक बंधु अनेक ॥36॥

शरणागत जन हुए समर्पित ।
पाये विद्या श्री मनवांछित ॥37॥

करके कुंडलिनी आवाहन ।
देवस्वरुप में पशु जागरण ॥38॥

ॠषि कार्य में हो तल्लीन ।
ग्रंथ रचे बहुविध नवीन ॥39॥

इसवी दो हजार सन बीस ।
गए स्वधाम तन त्याग मुनीश ॥40॥

जो यह पढे योगर्षि चालीसा ।
करहि कृपा काली अरु ईसा ॥

-: दोहा :-
बाल ब्रह्मचारी योगी सदगुरु ज्योति महान ।
नमन करुँ योगर्षि चरण कोटि जन्म बलिदान ॥


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