हे जगजननी ! तुम्हारे माथे पर अमृत - वर्षण करने वाला चंद्रमा सुशोभित है और गले में मुण्डमाल जोकि तंत्र के सभी पीठों की सिद्धि देने वाला है । तेरे एक हाथ में खड्ग है जो काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि विकारों से भरे दुष्टों का संहार करने वाला है तो दूसरे हाथ में मुंड । यह मुण्ड चण्ड असुर की महिमा को बढ़ाने वाला है जिसे संहार कर तूने सद्गति प्रदान किया । तुम्हारे तीसरे हाथ में मुण्ड का ही पात्र है जिससे मदिरा पीकर मदमस्त हुई तुम चौथे हाथ से अभय प्रदान करती हो ।
हे कालिके ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ जिन्होंने पग में नुपूर आदि आभूषण को धारण कर रखा है और जिनके खुले हुए केश पाँव तक बिखर कर काली घटा की तरह शोभायमान हो रहे हैं ।
हे महामाते ! आप ही काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता, सुधुम्रवर्णा, स्पफुरलिंगिनी एवं विश्वरुचि देवी बनी सप्तलोक में प्रसिद्ध, वेदवर्णित, ब्रह्म की सप्तजिह्वा हैं । भूः से लेकर सत्यम लोक तक में दिए गए कर्ममय, ज्ञानमय, द्रव्यमय, भावमय, हविष को ग्रहण करनेवाली हे महादेवी ! आपको ॠषिगण नमस्कार करते हैं ।
हे जगदंबा ! आपकी जिह्वा बहिर्मुख हुई लपलपा रही है जो दिशाओं के अज्ञानांधकार को नष्ट करनेवाली है । आपके अग्र भाग में प्रकाश के लोक एवं पृष्ठ भाग में अंधकार के लोक विराजमान हैं ।
हे जगदंबा ! मैं आपको नमन करता हूँ । आप संपूर्ण प्राणियों का प्राण होकर प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान - ये पाँच नाम से विख्यात हैं जो जीव के जीवन का आधार है । आप ही रेचक, कुंभक और पूरक के रूप में प्राणियों में प्रविष्ट होकर हे महावायु ! गतिशील हो रहीं हैं । संपूर्ण संवेदना, गति, लहर आपसे ही हो रही हैं ।
पाताल आदि सप्तलोक की प्रसिद्ध निद्रा देवी आदि मातृ शक्तियाँ जो साधक द्वारा दिए गए कर्ममय, भावमय हविष को ग्रहण करने वाली हैं उन समस्त माताओं को हम प्रणाम करते हैं ।
हे माते ! योगियों का योग, ज्ञानियों का ज्ञान, भक्तों का प्रेम और कपालिकों की कपाल विद्या, तंत्र आदि आपसे ही जीवन पा रहे हैं । आपही की कृपा से साधक लोग सिद्धि पाकर कृतार्थ हो रहे हैं ।
हे भगवती ! हे भवतारिणी ! हे अंबे ! आप दस महाविद्या - काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्मस्ता, धूमावती, भैरवी, बगलामुखी, मातंगी, कमला - रूपा बनकर कुंडलिनी शक्ति में विद्यमान हैं । हे महायोगिनी ! हे महाविद्या ! हे महाशक्ति ! साधक को मनोवांछित फल देने वाली ! सिद्धि आदि विभूति देकर तुष्ट करनेवाली ! हे प्रसन्नमुखी ! हे पावनी ! हम सभी उपासक नतमस्तक हुए आपके श्रीचरणों में शत - शत प्रणाम करते हैं । आप प्रसन्न हों ! प्रसन्न हों ! उद्धार करें ! उद्धार करें ! रक्षा करें ! रक्षा करें !
हे देवी ! शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री रूपा नव दुर्गा, आप इन प्रसिद्ध रूपों से दैत्यों का संहार करनेवाली और देवता को हर्ष प्रदान करने वाली हैं । आपके ॠषि - वांदित पग को हम प्रणाम करते हैं । आप हम सब पर अनुग्रह करें । हे भवतारिणी ! भव - बंधन में पड़े हम सभी का उद्धार करें ।
हे सभी देवताओं के शक्तिपुँज ! दीप्तिमती, सर्वसामर्थ्यपूर्ण आप अनेकशस्त्रहस्ता देवी को सिद्धगण, ॠषिगण, गंधर्वगण नमस्कार करते हैं ।
हे वेदमाता ! वेद की ॠचाएँ, श्रुति, स्मृति, आगम - निगम आदि सब आपसे ही उद्भूत हो प्रभावमय हो रहे हैं ।
हे माते ! गंगा नाम से त्रिलोक में प्रवाहित होकर आप सबके पाप तथा दुख को हरने वाली हैं । आप ही कामधेनु रूप से प्रतिष्ठित हुई पुण्य स्वरूपा हैं ।
हे अंबे ! वे जो शिव हैं उनकी सारी संकल्प शक्तियाँ, पार्वती नाम से प्रसिद्ध हुई आप ही हैं जो महातपस्वरूपा हैं । आप ही विष्णुप्रिया नाम से विख्यात हुई संकल्प, शक्ति, आनंद, प्रेम को बिखेरनेवाली पृथ्वीलोक में राधा नाम से प्रसिद्ध हैं । महालक्ष्मी रूप में आप षडैश्वर्य से संपन्न संपूर्ण वैभव को देनेवाली हैं । आप ही अष्टसिद्धि, नवनिधि साधक को प्रदान करती हैं । आप ही हर्ष, उल्लास, उत्साह, उमंग आदि भाव जीव में व्यक्त कर उन्हें सुख पहुँचाने वाली जगदंबा हैं ।
हे माते ! आप ब्रह्मदेव की सहचरी सरस्वती नाम से प्रसिद्ध हैं । इस स्वरूप से आप संपूर्ण विद्या, ज्ञान, वैराग्य, प्रेम, संगीत आदि सामवेद प्रदात्री हैं ।
हे माते ! आप ही महेश्वरी रूप से विराट हुई संपूर्ण ब्रह्मांड स्वरूपा तथा ब्रह्मांड को धरण करने वाली जगद्धात्री हैं ।
हे अंबे ! पृथ्वी आपका पग, आकाश मस्तक, दिशा भुजाएँ, चंद्र - सूर्य आँखें, द्रुम - लता - पत्ता वस्त्र और आभूषण हैं । हे महेश्वरि ! आपके इस स्वरूप को मैं प्रणाम करता हूँ । आप आदि, मध्य, अंत से रहित अनिर्वचनीय, अगोचर, शाश्वत और सनातन हैं ।
हे देवी ! आपको मैं प्रणाम करता हूँ । हे भक्तवत्सला ! आप अपने भक्तों के ग्रह, व्याधि, विपदा आदि दुखों को हरने वाली कल्याणी रूप से प्रसिद्ध हैं । आपको मैं प्रणाम करता हूँ । आप मेरी रक्षा करें । रक्षा करें । हे संपूर्ण भय का नाश करने वाली ! हे पतित को पावन करनेवाली ! बंधन से मुक्त करने वाली जगदंबा ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ । आप मेरी रक्षा करें । रक्षा करें ।
हे शांतस्वरूपा ! हे संपूर्ण वृत्तिस्वरूपा ! हे भक्तों के मनवांछित फल को देनेवाली मैं आपको प्रणाम करता हूँ । आप मेरी रक्षा करें । रक्षा करें ।
हे भद्रे ! हे सुमुखी ! हे कल्याणी ! आप संपूर्ण कलहों को नष्ट करें । मेरी रक्षा करें । मेरी रक्षा करें । मैं आपकी शरण में हूँ । पापियों के पाप को हरण करने वाली ! हे धर्म में प्रतिष्ठित करनेवाली ! हे महामाये ! हे गुह्यविद्या स्वरूपा आप साधक का कल्याण करें और मेरी रक्षा करें । रक्षा करें ।
हे भवानी ! भवसागर में गोता लगाते जीव का एकमात्र आप ही सहारा हैं । हे कल्याणी ! रक्षा करें । हे भद्रे ! हे मृगलोचनी ! सभी ओर से, दसों दिशाओं से आने वाली कुटिल शक्ति से मेरी रक्षा करें । रक्षा करें । मैं आपकी शरण में हूँ । अपनी शरण में आए हुए का रक्षण करना आपका धर्म है । साधुओं की साधुता और सज्जन की भद्रता आपही के द्वारा प्रदत्त है । आप मेरी रक्षा करें । रक्षा करें ।
हे महामोहिनी ! आप ज्ञानियों के भी मन को मोहित कर संसार में लगा देती हैं । हे दयामयि ! मेरी रक्षा करें । रक्षा करें ।
हे पतितपावनी ! अस्त्र, शस्त्र, अग्नि, विष आदि के प्रयोग से मेरी रक्षा करें । रक्षा करें । कुदृष्टि, कुवचन, कुप्रहार से मेरी रक्षा करें । सभी ओर से मैंने आप ही के चरणरज का अवलंबन लिया है ।
हे अवलंबा ! मेरी रक्षा करें । रक्षा करें । आपको मैं पुनः नमस्कार करता हूँ । जो भयभीत, त्रासित हैं उनकी आप ही रक्षा करने में समर्थ हैं । रक्षा करें । रक्षा करें । मैं बारंबार आपको प्रणाम करता हूँ । रक्षा करें । रक्षा करें ।
एक सौ आठ पीठों की भगवती के चरण - स्पर्श को प्राप्त यह जगदंबा का सिद्ध कवच है । जो श्रद्धालु माता को धूप - दीप, चंदन, नैवेद्यादि अर्पित कर त्रिसंध्या में इस देवी-कवच का नित्य पाठ करेंगे उनकी संपूर्ण विघ्न - बाधओं को, भय - त्रास को जगदंबा तत्काल नष्ट करेंगी । भक्तों की संपूर्ण मनोकामनाओं को पूर्त्त करने वाला आधिदैविक, आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक कष्टों का हरण करने वाला यह देवी - कवच ईश्वरी के आशीष से जगत्प्रसिद्ध होगा । यही देवी - वचन है ।