नृसिंह कवच

हे परमात्मन ! देव - वंदित ! महर्षियों के ध्यान का विषय ! सिद्धियों के निवासस्थल ! 'गंधर्वादि द्वारा उपास्य ! मनुष्य द्वारा पूजित ! हे प्रभु नृसिंहरूपधारी विष्णु भगवान ! आप को हम सभी भक्तगण नमस्कार करते हैं ।


हे सर्वात्मन ! साख्य-वेदांत–योग–प्रेम आदि विभिन्न प्रकार के सूत्र-सिद्धान्त द्वारा प्रतिपादित एकमात्र तत्व आप जगन्नाथ की हम सभी उपासक शत-शत नमन करते हैं ।


हे विश्वात्मा ! हे विराटरूप ! हे जगदीश्वर ! आप सभी दिशाओं को अपने में समेटे हुए, स्थूल-सूक्ष्म, व्यक्त-अव्यक्त, दृश्य-अदृश्य, सत्य-असत्य, भाव-अभाव बने हुए महेश्वर को जो श्रुति-स्मृति एवं नारदादि भक्तों द्वारा गायन करने योग्य है, हम सभी उपासक प्रणाम करते हैं ।


हे एकात्मस्वरूप ! हे कवलात्मस्वरूप ! हे त्रिविधदेव स्वरूप ! सृष्टि-पालन-संहार करने वाले ! हे ऑकार स्वरूप ! हे इंद्रादि देवताओं के स्वामी ! हम सभी साधकगण आप अकथनीय, अनिर्वचनीय, अचिन्त्यस्वरूप, निर्गुण, निर्विकल्प, सर्वव्याप्त प्रभु को दंडवत प्रणाम करते हैं । हे अखिलेश्वर ! हे सर्वेश्वर ! हे देवेश्वर ! हे निर्गुण ब्रह्म ! हे परम आश्चर्य स्वरूप ! आकाश, पृथ्वी आदि पंचभूत का धारण-पालन-उत्पत्ति-विनाश करनेवाले ! हे कालों के काल ! आप ही से इस विशाल सृष्टि की उत्पति, कल्प का प्रारंभ होता है और आप ही में यह चराचर ब्रह्मांड, देवता, गंधर्व, नाग, पितृ आदि लयभाव को प्राप्त होते हैं । हे अच्युत ! हे सनातन देव ! हे शाश्वत देव ! हे पुराण-पुरूष ! आपकी हम सभी भक्तगण मन-कर्म-वचन से वंदना करते हैं ।


है नाथों के नाथ ! ये दस इन्द्रियाँ, इनके पंच विषय, मन, बुद्धि, चित, अहकार एवं आत्मा- इन पच्चीसों तत्वों के स्वरूप वाले आप इस पिंड और ब्रह्मांड को बाहर एवं भीतर से धारण करने वाले हैं । हे जगत्पिता ! आप सबके आदि, मध्य और अंत के कारण हैं । हे जगदीश ! हे जनार्दन ! हम सभी साधकगण आपकी उपासना करते हैं । आप प्रसन्न हों । प्रसन्न हों । मधुसूदन ! हे माधव ! हे सत्य ! आप शंख-चक्र-गदा से शोभित हस्त वाले क्षीरशायी, लक्ष्मी द्वारा वदित-पूजित, ब्रह्मा आदि त्रिदेव, नारदादि गंधर्व के प्राणाधार जगदीश्वर प्रभु की हम सभी वंदना करते हैं । हे योगेश्वर ! हे यज्ञपति ! हे विश्वंभर ! है आनंदकद ! योगियों के योगतत्व ! ज्ञानियों के ज्ञान और भक्तों के प्रेम । उनके इष्ट आप योगेन्द्र, ब्रह्म, प्रियतम-प्रभु की सिद्धगण, महर्षिगण एवं संतगण उपासना करते हैं । वैराग्यादि दैवी-संपदा के गुण को प्रदान करने वाले ! हे विशुद्ध सत्वगुणी । हे धामी ब्रह्म सनातन ! हे विष्णु ! हम सभी उपासक आपका चरण-वंदन करते हैं । हे पुरुषोत्तम ! हे पुराण-पुरुष ! हे अभयपदप्रदाता ! हे परमगति ! हे परमधाम ! हम सभी साधक आश्चर्य से चकित हुए निवेदन कर रहे हैं ।


हे सर्वेश्वर ! हे सर्वनाथ ! हे सर्वद्रष्टा ! हे चतुर्युग को धारण करने वाले ! राम-कृष्ण आदि अवतार ग्रहण करने वाले, मनुष्य-पद को पवित्र करने वाले हे दशावतारधारी ! हे श्रीहरि ! निराश्रय के आश्रय, अशरण के शरण ! हे भक्तवत्सल ! हे करुणानिधान ! हे कृपासिंधु ! सभी प्राणियों के पालन-पोषण करने वाले हे प्रभु ! आप ही नक से त्राण देने वाले हैं । आप देव को मैं कैसे और क्या निवेदन करूं जो मन, बुद्धि के अविषय हैं । भक्तों पर कृपाकर सगुण रूप धारण करने वाले हे पतितपावन !हे दीनानाथ ! हे दीनबंधु ! हम सभी उपासक आपके चरण में युगल हाथ जोड़े प्रणाम करते हैं । आप प्रसन्न हों । अनुग्रह करें ।


हे नृसिंहरूपधारी ! हे परशुराम ! हे मत्स्यरूप ! हे कच्छपरूप ! हे वामनरूप प्रभु ! सृष्टि-संचालन में जब देवताओं के कार्य में व्यवधान उत्पन्न होता है तब विभिन्न रूप धारण कर देवताओं, ऋषियों का मंगल करने के लिए आप धरा पर अवतार लेते हैं । हे नृसिंह भगवान ! परमाश्चर्य अर्द्धसिंहरूप वाले, बहुत जोर से दहाड़ते हुए दिशाओं को भयभीत करने वाले आप परम दीप्तिमान प्रभु को मैं प्रणाम करता हूँ। आप की जिह्वा लपलपा रही है, आप के असुरों को भय देनेवाले महाभयावह रूप में प्रकट हैं , जिस रूप को देखकर देवता भी भयभीत होते हैं। आपके दोनों कर्ण खड़े हैं । आप बहुत जोर से साँस ले रहे हैं और अपनी डरावनी आँखों के द्वारा असुरों के बल-पराक्रम को क्षय करते हैं । ऑतों की माला को धारण करने वाले, हिरण्यकशिपु के सीने को विदीर्ण कर बहुत जोर से गरजने वाले, भक्त प्रह्लाद को सुख देने वाले, देह में बड़े-बड़े रोमों को धारण करने वाले महाबल-पराक्रम से युक्त, अजेय, अक्षय, अविनाशी स्वामी की हम सभी साधक उपासना करते हैं । हे भगवान नरसिंह ! सज्जनों को प्रताड़ना देने वाले, देवताओं के पद छीन लेने वाले, महाआततायी, पराक्रमी, बलवान, दुष्ट हिरण्यकश्यप का संहार कर धर्म की स्थापना करने वाले आप देवेश को हम प्रणाम करते हैं । हे प्रभु । जब-जब अंधकार की शक्तियाँ बलवती होकर त्रिलोक को ग्रस लेती हैं पृथ्वी, देवी-देवता, ऋषि, भक्त आदि जब दुखी हो जाते हैं तब-तब हे देव ! आप नृसिंह आदि अवतार लेकर असुरों का विनाश करते हैं और देवताओं को त्राण देते हैं ।


हे भगवन् ! आप ही कार्य हैं आप ही कारण हैं । आप ही कर्ता हैं आप ही भोक्ता हैं । आप ही नियंता हैं और आप ही साक्षी हैं । आप ही सांख्य सूत्र, आप ही वेदांत-सूत्र और योग सूत्र आदि विविध सिद्धांतों, दर्शनों के द्वारा जानने योग्य हैं । हे नृसिंह भगवान ! हे भक्तवत्सल ! हे अधम उद्धारक ! हे पतितपावन ! आप प्रह्वाद द्वारा निवेदित भक्ति और ज्ञान रूप विविध स्तोत्रों से गाये जाने पर प्रसन्न होकर अभयपद प्रदान करते हैं । हे नृसिंहदेव ! विपदा में, असुरों द्वारा प्रताड़ित किए जाने पर, कापालिकों द्वारा किए गए मारण-उच्चाटन आदि क्रियाओं से उत्पन्न संकट में, काल के प्रतिकूल होने पर उत्पन्न आपत्तियों में हमारी रक्षा करें । रक्षा करें । जंगलों में, पर्वत पर, श्मशान में, सुनसान में हिंसक जीव द्वारा आक्रमण किए जाने पर, ग्रहादि के विपरीत होने पर हे नृसिंह देव ! आप सभी प्रकार से हमारी रक्षा करें ।


हे प्रभु, ! भवसागर से पार करने में एकमात्र आप ही सहायक हैं । पाप का क्षय करने वाले, आयु की वृद्धि करने वाले, रोग से मुक्त करने वाले हे देवेश ! हे जगनिवास ! हे नृसिंहदेव ! हम सभी साधक भयभीत हुए, जन्म-मृत्यु के चक्र में फसे नाना प्रकार के सुख-दुख, हानि-लाभ, यश-अपयश, जय-पराजय आदि द्वंद्वों को भोगते हुए, विविध योनियों में भटकते हुए पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म आदि कारक कर्म से बँधे क्लेश पा रहे हैं । हे भवभयतारक ! कामादि वृत्ति के नाशक ! धर्म में स्थिर करने वाले, रजोगुण, तमोगुण, सतीगुण, प्राकृतिक बंधन, माया और काल-बंधन से मुक्त करने वाले हे कृपासिंधु आपके शरणाश्रित हुआ निवेदन करता हूँ । हे देव ! संपूर्ण पापों से मुक्त कर आप अपना अक्षय आनंद पद प्रदान करें । सांसारिक विषय-सुख द्वारा परास्त जीव अधीर हुआ आपका अवलंबन लेते हैं । आप उन्हें इस भवजाल से मुक्त कर अमरता प्रदान करते हैं । हे देव ! हे नृसिंह प्रभु ! असुरों को भी मृत्यु देकर आप उसे अपने स्वरूप में लय कर लेते हैं । हे सज्जन के रक्षक ! हे भक्तों के प्राण ! हे आश्रयदाता ! इस आवागमन रूप भव-बंधन से मुक्त कर जीवन-मरण रूप व्याधि-व्यथा से उद्धार करें । उद्धार करें । हे नृसिंहदेव ! शांत-चित्त हुए प्रह्वाद के दु:ख का अंत करने वाले और उसे हर्षित करने वाले हे विष्णो ! आपको हम सभी साधक एक पग पर खड़े हुए नमन कर रहे हैं । हे देव ! हे प्रभु ! हे भगवन ! हे प्रहाद जी की इष्ट ! हे तारणहार ! उद्धार करें ! उद्धार करें ! रक्षा करें ! रक्षा करें ! हे प्रभु, ! आप भक्त प्रह्वाद के शरीर को अपनी जीभ से चाटते हुए उन्हें आनंद प्रदान करते हैं। संत प्रह्वाद भयरहित हुए प्रसन्नचित्त हो आपसे- हे प्रभु ! शांत हों ! अपने क्रोध का शमन करें । शमन करें । ऐसी विनती कर हाथ जोड़े आपकी स्तुति करते हैं । आप उन्हें अभय वरदान देकर अमरता का सुख प्रदान करते हैं । हे प्रभु ! हिरण्यकश्यप आदि महाभट्टों का संहार कर देवताओं को हर्षित करते हुए अपने दोनों विशाल हाथों से भक्त प्रह्वाद को गले लगाते हैं । हे देव ! हे भगवन ! हे भक्तों के प्रियतम ! प्रह्वाद जी सहित हम सभी साधक आपको शत-शत नमन करते हैं । आप हम सभी की रक्षा करें । रक्षा करें ।


नृसिंह कवच माहात्म्य

रोग-व्याधि, अभिचारजनित संकट एवं अन्यान्य महाभय से त्राण देनेवाला, भगवत्प्रेम का वर्धक यह नृसिंह भगवान का अत्यंत ही प्रिय कवच है जिसे सिद्धि प्रदान करने हेतु वे स्वयं उसी रूप में प्रकट हुए हैं । जिस रूप में उन्होंने हिरण्यकशिपु का संहार किया था । उनके साथ-साथ द्वादश आदित्य, ब्रह्मादि त्रिदेव, महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती प्रभृति अन्यान्य देवियाँ एवं तैतीस कोटि देवताओं का समूह अति हर्षित हो नृत्य कर रहे हैं और कवच पुस्तिका पर पुष्प-वृष्टि कर इसकी संस्तुति कर रहे हैं । जो भक्तजन नृसिंहदेव को धूप-दीप, नैवेद्यादि से पूजन कर इस नृसिंह-कवच का नित्य त्रिसंध्या में पाठ करेंगे उनकी यथाभिलर्षित मनोकामना की पूर्ति होगी । यही देवताओं का आशीष है ।

इति

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