हे आदित्य ! सप्त रश्मियों से सुशोभित नभमंडल के स्वामी ! शनिदेव के पिता ! नवग्रह में श्रेष्ठ ! प्राणियों के सुख - दुख का हेतु ! चेतना, ज्ञान, जीवन, प्राणादि के पोषक ! हे अर्कदेव ! ज्ञानियों योगियों के सिद्धि - तत्त्व आप भानुदेव को हम सभी उपासक नमस्कार करते हैं ।
हे सवितादेव ! सृष्टि का प्रसव, धारण और पोषण करने वाले ! विज्ञानस्वरूप ! श्रुति-स्मृति द्वारा गायन करने योग्य ! योगियों के चक्र पर निवास करनेवाले ! हे पूषा ! अपनी स्वर्णमय आभा से परमतत्त्व का आवरण करनेवाले ! तत्त्व के प्रकाशक ! काम - क्रोध, लोभ - मोह, मद - मत्सरादि अज्ञानवृत्ति के नाशक ! काल की गति से परे ! आप ज्ञानधन प्रभु की हम सभी साधक उपासना करते हैं ।
हे भास्करदेव ! द्वादश रूपवाले, प्राणस्वरूप ! जल को धरण करने वाले ! जलवृष्टि करने वाले ! अंधकार के साम्राज्य को नष्ट करने वाले आप दिवाकर नाम से विख्यात प्रभु को हम सभी साधकगण अर्घ्य प्रदान करते हैं ।
हे अंशुमाली ! प्राणवायु रूप से प्रवाहित होकर पशु - पंछी, वनस्पति - औषधि आदि में वृद्धि प्रदान करने वाले ! हे अग्निरूप ! आप तन में निवास कर जीव के प्राण, अपान, व्यान, उदान, समानादि रूप से संचारित होकर अन्न पचाने वाले हैं । आप ही रक्त, वीर्य आदि तत्त्व का पोषण करने वाले, उर्जा, शक्ति, गति रूप में विहार करने वाले हैं । हे प्रभाकरदेव ! हम सभी साधकगण आपकी शरण में दत्तचित्त हुए साधना में संलग्न हैं ।
हे सूर्यदेव ! सम्पूर्ण प्राणलोक एवं उसके अधिष्ठात्री देवी - देवता, प्रजागण आपके ही तेजोमय रूप से कर्म में प्रवृत्त हुए गति पा रहे हैं । हे प्रभु ! आप ही स्वर्गादि लोक एवं तमस के लोक आदि के रचयिता एवं उनमें निवास करनेवाले सम्पूर्ण सुख-दुख के कारण हैं ।
हे दिनेश ! हे गोपति ! आप देव, गंधर्व, नाग, पितृ, यक्ष आदि सभी के प्रणम्य हैं । हे मित्र ! हे दिवापति ! हे अर्चिष्मान ! चर्मरोग, कुष्ठ आदि व्याधि को आप ही औषधि रूप से शमन करने वाले हैं । हे दीनानाथ ! हमारी सब प्रकार से रक्षा करें । रक्षा करें ।
हे खगदेव ! असुर - राक्षस - पिशाच आदि तमस की सत्ता को नाश करने वाले, आत्म प्रकाश स्वरूप सम्पूर्ण दोषों - विकारों का शोधन करने वाले, प्राणियों के लोचन में निवास करने वाले - उसमें देखने की शक्ति देनेवाले, श्रुति-स्मृति में देवताओं द्वारा तत्त्व रूप में वर्णित आप ॠषियों द्वारा धारित गगनचारी प्रभु को हम सभी साधक शत - शत प्रणाम करते हैं ।
हे दिवस स्वामी ! ब्रह्मा आदि लोकों की अवधि निर्धारित करने वाले ! अबाध्य गति से संचार करने वाले ! पूरब के क्षितिज पर उदित होकर आसमान में विचरण करते हुए पश्चिम में डूब कर संध्या का आवाहन करने वाले ! रात में सभी प्राणी को अन्न - प्राण देकर जीवन का संचार करने वाले ! प्रातःकाल उषा देवी नाम से प्रसिद्ध, वेद - वंदित, सत्य की आवाहिका, कल्याणमयि देवी का सृजन करने वाले हे सिद्धबंधु ! हे यम के पिता ! हे कालिन्दी के जनक ! हे तरणी नाम से प्रसिद्ध प्रभु, प्रसन्न हों ! प्रसन्न हों ! हम सब की रक्षा करें ! रक्षा करें ।
हे प्राणवल्लभ ! मृत्यु का कारण ! जन्म के हेतु ! सुख - दुख के विधाता ! हे जगदीश ! प्रसन्न हों, प्रसन्न हों । रक्षा करें । रक्षा करें ।
हे करदेव ! हे प्रकाशपुँज ! हे हंस ! हे मार्त्तण्ड प्रभु ! हे दुर्जय ! देवताओं, ब्रह्मचारियों, संन्यासियों, ज्ञानियों और योगियों के सभी प्रकार से आप ही अवलंब हैं ।
हे भुवन - भास्कर ! हे मारीच ! ये सम्पूर्ण लोक - लोकान्तर चक्र के अरे की तरह आपसे ही गुँथे हुए हैं । आप ही सबके प्राणधन प्रभु हैं । हे देव ! यह भुः, भुवः और स्वः लोक आप के ही द्वारा प्रकाशित होता है । आप ही इनके प्रजापालक हैं । गायत्रा नाम से प्रसिद्ध ॠचा आप ही हैं । सावित्री नाम से विख्यात लोक आप में ही समाहित है । आप लोक - लोकांतर के पितामह हैं ।
हे प्रभु ! सूर्यवंश में उत्पन्न हुए धर्मज्ञ, प्रतापी, ज्ञान - विज्ञान से पूर्ण नृप एवं राजर्षियों के आप गौरव हैं ।
हे भगवान ! आप पिंगला नाड़ी में निवास करने वाले, प्राणसंचारी रूप, योगियों के जीवन - धन हैं ।
हे योग - विज्ञान के स्वामी ! आपकी कृपा से ही योगी योग - धर्म में प्रवृत्त हुए सिद्धि लाभ करते हैं ।
सभी साधक के वंदनीय ! समर्पित चित्त में उत्पन्न होने वाले हिंसा आदि आवेग के नाशक, सत्य के प्रकाशक प्रभु को हम सभी प्रणाम करतें हैं ।
हे सनातन देव ! महाकाली के रुप में आप ही वंदित हैं । अभय देनेवाले, वरदाता, त्रिताप नाशक प्रभु को हम सभी नमन करतें हैं । आप प्रसन्न हों । आप प्रसन्न हों । अनुग्रह करें । अनुग्रह करें । हे देव ! रक्षा करें । रक्षा करें । आप अजेय, अक्षय, अनंत प्रभु को हम बारंबार प्रणाम करतें हैं । रक्षा करें । रक्षा करें ।
हे अमरता देनेवाले । हे अमरधाम के गुरु ! सभी साधक आस लगाए आप ही पर निर्भर हैं ।
प्राकृतिक आपदा, दानवीय बाधा, काल की कुदृष्टि आदि से हे शाश्वत देव ! हे मुक्त देव ! हे अपात प्रभु ! रक्षा करें । रक्षा करें । हम सभी उपासक नाना प्रकार के स्तोत्र - मंत्र एवं यौगिक क्रियाओं के द्वारा आपकी ही उपसना करतें हैं । हे सभी यौगिक मुद्राओं के जनक ! विभिन्न प्रकार के आसन, प्राणायाम, त्राटक, ध्यान - धारणादि क्रियाओं के स्वामी ! आप मेरी रक्षा करें । रक्षा करें । हे कृपानिधान ! हम नाना प्रकार की व्रत आदि उपासना - विधि, ज्ञान, भाव, प्रेम आदि का आश्रय ले आपकी शरण में हैं । आप हम सभी साधक के पिता - गुरु - स्वामी हैं । आप प्रसन्न हों । प्रसन्न हों । अनुग्रह करें । अनुग्रह करें ।
देवताओं की असीम अनुकंपा से यह सूर्य - कवच साधकजन को प्रदान किया जा रहा है । जो श्रद्धावंत उपासक सूर्यदेव को पुष्प - चंदन - अक्षत - जल से युक्त अर्ध्य अर्पित कर इस पवित्र कवच का नित्य पाठ करेंगे उनके सारे रोग -व्याधि, दुख - विपत्ति का सूर्यदेव तत्काल नाश करेंगे । मनोभिलषित पद, प्रतिभा, विद्या एवं ऐश्वर्यादि का प्रदाता यह कवच दिनकर की प्रत्यक्ष कृपा का आवाहक है । यह कवच नारायण सहित द्वादश आदित्य के महातेज से शक्ति संपन्न हुआ इच्छित फल देने में सिद्ध है । यह जगत्प्रसिद्ध हुआ आर्तजन का संकट निवारक होगा । यही बिबुध - वाणी है ।