हे रघुनाथ ! हे रघुनंदन ! हे विष्णु ! जब पृथ्वी दानव के उपद्रव से दुखी हो जाती है, जब देवता, संत आदि प्रताड़ित किए जाते हैं तब हे राघव ! आप मनुष्य का अवतार लेकर असुरों का विनाश करते हैं और देवताओं एवं सिद्धों को सुख पहुँचाने के लिए धर्म की स्थापना करते हैं ।
हे प्रभु ! आप विविध अवतार लेकर विविध काल में धरा पर उपस्थित होकर वसुंधरा को पावन और पुनीत करते हैं । हे दशरथतनय ! हे मर्यादापुरषोत्तम ! मानवीय मर्यादा का अनुसरण करते हुए वेद - वर्णित अनुशासन, सिद्धांत का प्रतिपालन आप अपने विमल चरित्र द्वारा करते हुए विश्व कल्याण में तत्पर रहते हैं ।
हे कौशल्यानंदन ! आप महालक्ष्मी की अंश स्वरूपा सती - साध्वी सीता को अंगीकार कर त्याग - तपस्या एवं ॠषि - धर्म में प्रवृत्त होते हैं । हे भरताग्रज ! भरत, लक्ष्मण आदि भ्राताओं के संग राजधर्म का पालन करते हुए आप वसुधा पर देव - धर्म की स्थापना करते हैं ।
हे प्रभु ! आप विश्वामित्र, वसिष्ठ आदि गुरुजनों से अस्त्र - शस्त्र, मंत्र, आयुर्वेद, योग आदि की शिक्षा प्राप्त कर तमस के पुत्रों का पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए विनाश करते हैं । हे रघुनाथ ! हे रघुकुलभूषण ! आप अरण्य में तपस्या में प्रवृत्त ॠषियों को प्रताड़ित करने वाले दुष्टों का संहार करते हैं और शबरी, सुग्रीव, जटायु आदि भक्तों का उद्धार करते हैं ।
हे प्रातःस्मरणीय देव ! आप रघुकुल की मर्यादा को बढ़ाते हुए सूर्यवंश में उत्पन्न मनु, इक्ष्वाकु आदि सम्राट की कीर्ति को दसों दिशाओं में फैलाकर उन्हें यशस्वी बनाते हैं ।
हे सीतापते ! हे लक्ष्मीपते ! रणभूमि में कर्कश, निर्मम कठोर स्वभाव वाले, शत्राओं का नाश करने के लिए काल के समान वेग वाले, अजय, अभय चित्त वाले हे प्रभु ! आपका देवता, गंधर्व, नाग आदि पुष्पवृष्टि कर जयघोष करते हुए वंदन करते हैं ।
हे श्रेष्ठव्रतधारी ! हे तपोधन ! राजमर्यादा के नाम पर सती वैदेही का त्याग करने वाले हे अनुशासनप्रिय ! हे न्यायप्रिय प्रभु ! लक्ष्मण द्वारा अवज्ञा करने पर उन्हें निष्कासित करने वाले हे सुवीर ! हे धैर्यवान श्रीराम ! आप जगत में सदा वंदनीय, नैतिकता की मूरत हैं । हे जानकी वल्लभ ! हे त्रिकालज्ञ ! सर्वज्ञ हुए भी अपने ऐश्वर्य को छुपाते हुए हे परम महिमावान राजेश्वर ! आप साधरण मनुष्य-से दिखलाई पड़ते हैं ।
हे विधाताओं के विधाता ! अपने बनाये विधान का स्वयं पालन करते हुए, जगत शिक्षार्थ प्रारब्ध - कर्म को श्रेष्ठ बताते हुए आप अरण्य में विहार करते हैं ।
हे जगदीश्वर ! महाधनुषधारी ! वल्कल धारण करने वाले ! महातपस्वी ! महर्षियों द्वारा सम्मानित ! आप धूल - धूसरित वैरागी रूप में उदासीन हुए विपिन विहार करते हैं । हे प्रभु केवट के अटपट प्रेम से प्रसन्न हुए, उसे अभय वर देते, गले लगाते हुए अंजान से बने, राही की तरह आप वन में भटकते हैं ।
हे जगन्नाथ ! सती अहिल्या को ॠषि - श्राप से मुक्त करते हुए, राजाओं से भरी सभा में धनुष को भंग करते हुए, जनक द्वारा सम्मानित, नृपों को भयभीत करनेवाले, परशुराम के अहं को नष्ट करते, अपने पराक्रम से जगत में परिचय और ख्याति स्थापित करते, अयोध्यानरेश दशरथ का सम्मान बढ़ाने वाले, सूर्यवंश के गौरव को गौरवान्वित करनेवाले आप अजेय, अभय, क्षत्रियकुलभूषण, रघुनाथ को हम सभी शत - शत नमन करते हैं ।
हे प्रभु ! आप सुग्रीव, हनुमान, अंगद, जामवंत आदि द्वारा सेवित, असुरों को पराजित कर विभीषण को राजपद पर स्थापित करने वाले प्रभु को हम प्रणाम करते हैं ।
हे सूर्यवंश में श्रेष्ठ ! अश्वमेध यज्ञादि पुनीत कर्म करनेवाले, अपने पुत्रों- लव - कुश का सम्मान बढ़ाने वाले, वाल्मीकि आदि ॠषि द्वारा निर्दिष्ट पथ पर चलने वाले आप प्रभु को हम सभी साधक अपने रक्षण के लिए निवेदन करते हैं ।
हे रणधीर ! दानवीय उपद्रव, शत्रुमध्य संकटों में अपने भक्तों की रक्षा करें । हे विश्वविजयी ! बड़ी - बड़ी भुजाओंवाले ! अपने धनुष के टंकार से पापियों के हृदय को विदीर्ण करनेवाले आप हमारी रक्षा करें । रक्षा करें ।
हे परमेश्वर ! काल की गति को रोकनेवाले, भक्तों पर अनुग्रह करने वाले आप हमारे त्रिताप का शमन करें । शमन करें ।
हे महावीर ! दुष्टों का संहार करने वाले ! पापियों को त्रास देने वाले ! धनुषधारी ! अवध - विहारी ! महापराक्रमी ! मैं आप अजेय श्रीराम की शरण में हूँ जो अपने भक्तों की सभी प्रकार से रक्षा करनेवाले हैं ।
हे न्यायप्रिय ! अन्यायियों के अन्याय का शमन करनेवाले, सज्जनों को त्रास से मुक्त करने वाले हे सीतावल्लभ ! हम सभी आप के शरणागत हैं । रक्षा करें । रक्षा करें । तपस्वियों का तप, ब्रह्मचारियों का ब्रह्मचर्य, भक्तों का प्रेम - सभी आप ही के द्वारा रक्षित हो ।
हे असुरनिकंदन ! त्रिशिरा, सुबाहु, खर - दूषण, रावण आदि दानव का संहार करनेवाले आप परमेश्वर के हम शरण हैं । रक्षा करें । रक्षा करें ।
हे प्रभु ! बंदर, भालुओं द्वारा समुद्र में सेतु का निर्माण करने वाले, बंदर - भालू का गौरव बढ़ाने वाले आप सर्वजयी सर्वसामर्थ्यवान प्रभु के हम शरणागत हैं । रक्षा करें । रक्षा करें ।
हे परमात्मा ! आगम - निगम द्वारा वंदित ! भक्तों के हृदय - स्थल, सुरपूजित आप परम पराक्रमी अजेय वीर को हम सभी प्रणाम करते हैं । आप रक्षा करें । रक्षा करें ।
हे रणबाँकुरे ! कालजयी ! दुष्टों को भयदेनेवाले ! परमप्रतापी ! आप आजानुबाहु श्रीराम का हम सभी अपनी रक्षा के लिए आह्वान करते हैं ।
हे विष्णु ! आप जगन्नाथ को भवभीत से मुक्त करने के लिए, काम आदि दुर्जय विकार का दहन करने के लिए हम बारंबार पुकारते हैं ।
हे शरणागतवत्सल ! हे भवतारक ! हे अधमउद्धारक ! हे काल - बंधन से मुक्त करनेवाले ! हे प्राकृत से परे ! हे माया - बंधन को छुड़ाने वाले प्रभु आप प्रसन्न हों । प्रसन्न हों । अनुग्रह करें । रक्षा करें । रक्षा करें ।
हे देव ! दानव - दल हताश हुए, निराश हुए, अपने स्वामी द्वारा अनारक्षित, अपने प्राण बचाकर आपकी शरण में आने के लिए उद्यत होते हैं किंतु असुरराज द्वारा प्रेरित और भयभीत करने पर आपके तीक्ष्ण बाणों द्वारा टुकड़े - टुकड़े हो जाते हैं । मर्कट और रीक्ष अपनी जीत समझकर आपका जयघोष करते हैं । आपकी जय पर हर्षित हो सुमनवृष्टि करते हैं, देव - नृत्यांगनाएँ नृत्य और गायन द्वारा, गंधर्वगण स्तुति द्वारा आपका यशोगान करते हैं ।
पापियों, आततायियों, दुष्टों का संहार करनेवाले ! हे रणधीर श्रीराम ! मैं आपकी शरण में हूँ- आप मेरी सभी प्रकार से रक्षा करें । रक्षा करें । अभय दें । अभय दें ।
सकल अभीष्टों का प्रदाता, संकट - निवारक यह श्रीराम - कवच भक्तों की सभी प्रकार से रक्षा करने के लिए देवताओं द्वारा प्रदत्त सिद्धि संपन्न है । स्वर्णमय प्रकाश के बने देवालय में जहाँ शंख, घड़ियाल, घंटा की तीव्र धुन गुंजायमान है, जहाँ हर्षित हो सकल देव - समुदाय नृत्य कर रहा है वहीं श्रीरामभद्र अपने अंगूठे से सिंदूर का लेप कर इस कवच को कामना - पूर्ति में समर्थ होने का वर प्रदान करते हैं । प्रभु श्रीराम की भक्ति चाहने वाले, मुक्ति के आकांक्षी, लौकिक - पारलौकिक सुखों के प्रार्थीजन घोर विपदा में फँसे आर्तजन इस कवच का नित्य त्रिसंध्या में पाठ करें और धूप - दीप नैवेद्यादि अर्पित कर प्रभु श्रीराम को प्रसन्न करें । उनकी सभी अभिलाषाएँ पूर्ण होंगी- इसमें कुछ भी संदेह नहीं है ।