की प्रेरणा को निरस्त कर देना चाहिए वैसे ही पुण्य क्रियाओं के संकेत को भी समझ-बूझ कर ही संपादित करना चाहिए । ऐसा देखा जाता है कि दिव्यात्मा का स्वांग किये हुए निम्न कोटि की प्रेतात्मा या शक्तिशाली असुर जिस मनुष्य के चित्त पर अधिकार कर रहे होते हैं उन्हें नाना प्रकार संपादित होने वाले पुण्यकमों को देवता के बदले असुरादि सताएँ ही ग्रहण कर लेती हैं । पार्थिव उपासनाओं को ग्रहण करने वाले ये प्रेत उपासना के अनुरूप फल भी प्रदान करते हैं। किंतु इनकी सिद्धि करने वाले मनुष्य मरणोपरांत इनके ही लोक को प्राप्त करते हैं । कुछ और भी अवरकोटि की प्रेतात्मा अपने को सिद्ध करने वालों के लिए उसी प्रकार काम करती है जैसे कोई नौकर मालिक के लिए काम करता है। दूर की वस्तु को ले - आना, किसी चीज को गायब कर दूर में प्रकट कर देना, आकाश में हाथ लहराते ही फल, मिठाई आदि वस्तुओं की बारिश कर देना जैसे चामत्कारिक करतब दिखाने वाले व्यक्ति प्राय: किसी सिद्धगत प्रेत की सहायता से ही इन कायों का प्रदर्शन करते हैं। कुछ मनुष्य के पास इस प्रकार की योग्यता रहती है कि वे किसी व्यक्ति को देखकर उसके विगत काल की छोटी-छोटी घटनाओं का भी सटीक ब्यौरा पेश कर देते हैं । जो बातें नितांत गुप्त हैं मसलन- उसने आज क्या खाया, उसकी जेब के नोट का क्या नंबर है- जैसे प्रश्नों की सही जानकारी देकर वे लोगों को अचंभित कर देते हैं कितु उनके इन कारनामों के पीछे उनका परम तत्व का ज्ञान होना या सर्वज्ञता को प्राप्त होना कारण नहीं है अपितु कुछ ऐसी प्रेतात्माओं की सिद्धि है जो कान में घुसकर उन्हें सारी जानकारी दे देती है । ऐसे लोगों में अधिकांश को कर्णपिशाच की सिद्धि रहती है जिन्हें आमंत्रित करने के लिए कतिपय साधक अपने कान में विष्ठा की कुछ मात्रा लगाते हैं । चुंकि अपवित्र आत्मा का आहार भी अपवित्र ही होता है अत: जो जिस पिशाच, राक्षस, असुर आदि कोटि की आत्मा की सिद्धि मदिरा आदि का किसी न किसी प्रकार भोग लगाते ही हैं। अपवित्र वस्तु अपवित्रात्मा के टिकने का आधार बनती है । किसी हड्डी, खोपड़ी,