पृष्ट संख्या 17
  • 3. दूषित बृहस्पति पर्वत- यदि बृहस्पति पर्वत द्वीप चिह्न से आच्छादित हो।

  • 4. दूषित शनि क्षेत्र- यदि शनि पर्वत पर द्वीप का चिह्न हो ।

  • 5. दूषित चन्द्र क्षेत्र- यदि चन्द्र पर्वत धंसा हो, द्वीप, क्रॉस, वृत, जाल, धब्बा आदि विकृति कारक चिह्न से युक्त हो ।


किन्तु ये रेखाएँ या लक्षण प्रेतबाधा की संभावना मात्र ही दर्शाते हैं इनकी सत्यता को हस्तरेखाविद् अन्य प्रमाणों से भी पुष्ट करते हैं । फिर भी प्रेतबाधा की सही प्रकृति और उपचार गुह्यवाद के सिद्धहस्त साधक ही जानते हैं। सूक्ष्म लोकों में विचरण करने में समर्थ, सूक्ष्म दृश्य, ध्वनि, संकेत और प्रेरणाओं को मानसिक एकाग्रता, यौगिक चेतना के बल पर जान लेने वाले यौगिजन मनुष्यों के चित्त में पाये जाने वाले वृत्ति स्वरूप सूक्ष्मात्माओं की प्रकृति को तो जान ही लेते हैं साथ ही अन्य कारणों से भी उत्पन्न प्रेतबाधा को भाँप लेते हैं । सूक्ष्मजगत के भीषण दुष्टात्माओं या अपने ही कुल के किसी भटकते प्रेत का उत्पात हो- इनसे ग्रस्त मनुष्य के बाहरी एवं आन्तरिक हाव-भाव में व्यापक अन्तर आ जाता है । किसी व्यक्ति के बाहरी हाव-भाव में भी यदि निम्नांकित लक्षण दृष्टिगोचर हो तो प्रेतबाधा का अनुमान लगाया जा सकता है :-


  • 1. उन्माद को प्राप्त अधिकांश मनुष्य प्रेतबाधा से जूझते रहते हैं । करने वाले व्यक्ति प्राय: प्रेत से प्रभावित रहते हैं। उन्माद में आकर दूसरे को या स्वयं को ही प्रताडित करने की चेष्टा करना, आत्महत्या का प्रयास करना, अपशब्द कहना, हिंसक मनोवृत्ति अपनाना जैसे कार्य करने वाले व्यक्तियों में प्रेतों की प्रेरणा को पढ़ा जा सकता है ।

  • 2.कई प्रकार के मनोरोग मानसिक विकृति के कारण भी उत्पन्न होता है कितु कई व्यक्तियों में विशिष्ट प्रकार के मनोरोगों के पीछे सूक्ष्म-सत्ताओं का हस्तक्षेप देखा जाता है । आग-पानी आदि से डरनेवाला, किन्हीं विशेष आदतों-अभ्यासों की पुनरावृति करते रहने वाला, एकांत में स्वयं में खोया हाथ से इशारा करने वाला, एकांत में बोलने वाला, मानसिक रूप से अनुपस्थित रहने वाला, ऊल-जलूल हरकत करने वाला, कभी हँसने कभी रोने वाला, देश-काल–परििस्थति को अनुरूप आचरण ना करने

© Copyright , Sri Kapil Kanan, All rights reserved | Website with By :Vivek Karn | Sitemap | Privacy-Policy