पृष्ट संख्या 18

वाला मनोरोगी भी सूक्ष्मात्माओं के स्पर्श के कारण ही असामान्य प्रतीत होता है । प्रेतबाधा से ग्रस्त व्यक्ति कभी पूजा-पाठ का पवित्र दृश्य देखता है तो कभी पखाना-पेशाब जैसी गन्दी वस्तुएँ देखता है । उसे शुचि पदाथों में गन्दगी का और गन्दे चीज में पवित्रता का बोध होता है । ऐसे व्यक्ति प्रेत के द्वारा छले जाते हैं । वह देखता है- यहाँ भगवान हैं- वहाँ भगवान हैं । वह स्वयं शिव है, काली है आदि-आदि कहने लगता है । उसे स्वयं को ही भगवान होने का भान होता है । स्वप्न एवं जाग्रत अवस्था में भय, हर्ष को प्राप्त कर रोने, गरजने अनाप-शनाप बोलने वाले व्यक्ति भी प्रेतबाधा को दर्शाते हैं । चूँकि प्रेत मनुष्य की आध्यात्मिक आस्था, श्रद्धा को खतम करने के लिए पवित्र पदार्थों पर अपवित्र वस्तुओं का मिथ्या दृश्य दिखलाता रहता है । अत: इनसे प्रभावित मनुष्य प्राय: आध्यात्मिक आस्था, निष्ठा से हीन, भगवान-भगवती को अपशब्द कहनेवाले होते हैं । ऐसा भी होता है कि कोई-कोई व्यक्ति प्रेत से प्रभावित होकर पूजा-पाठ में अधिक संलग्न हो जाते हैं । चित्त की अशुचि अवस्था में पूजा-पाठ में अधिक संलग्न हो जाते हैं । चित्त की अशुचि अवस्था में पूजा-पाठ करने वाले व्यक्ति की उपासना को पुण्यशाली प्रेत ग्रहण करता रहता है । उस अवस्था में पूजा-पाठ, जप-ध्यान छोड़ना ही श्रेयस्कर है । किसी-किसी परिवार में इस प्रकार की घटना को कई सदस्यों के संग घटित होते देखा जाता है । ऐसी अवस्था में पुण्य ग्रहण करने वाले प्रेत के प्रभाव में पूरा परिवार ही रहता है ।


  • 3. मूच्छा आना ।

  • 4. ऐसा रोग उत्पन्न होना जो चिकित्सकों से प्राय: साध्य नहीं हो ।

  • 5. अनुच्चरित आवाज को सुनना– अनुभव हो कि कोई गृहकार्य कर रहा है, चहलकदमी कर रहा है । प्रेतबाधा से ग्रस्त परिवार में लोग ऐसा अनुभव करते हैं कि कोई मृतक आत्मा अपने पूर्व काल के दिनचर्या का अभ्यास कर रहा हो ।

  • 6. प्रेत जब मन पर काबिज हो जाता है तब ऐसा भी अनुभव होता है कि जितने भी खाने की चीजें हैं वे अपवित्र हैं । उसे सभी खाद्य-पदाथों

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