बँधा रहता है। इसी कारण सूक्ष्म शैतानी आत्मा- इतनी शक्तिशाली होने पर भी- प्रत्येक मनुष्य को तंग करने का अधिकार नहीं रखती है । वह सबके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती है । सूक्ष्म शरीर में स्थित मूलाधारादि सप्त आध्यात्मिक चक्र से इस सुरक्षा-वलय को उर्जा प्राप्त होती है । यदि किसी कारणवश इन उर्जा-प्रवाह का वेग क्षीण हो जाता है तो अशुभ शक्तियों को उस शरीर में प्रवेश करने के लिए छिद्र मिल जाता है । इन उर्जा-प्रवाह के क्षीण होने का मुख्य कारण कुंडलिनी शक्ति का बुझना है। जब कुंडलिनी शक्ति उध्र्व-चक्रों का भेदन करती हुई आरोहण करती है तब उसका तेज आसुरिक, राक्षसी, पैशाचिक आत्माओं को बाहरी रूप से खदेड़ देता है- इसके इर्द-गिर्द वे फटकना नहीं चाहते हैं किंतु जब यही कुंडलिनी मूलाधार के नीचे अवचेतन की भूमि में अवरोहण करती है तो उसका रक्षाकारी तेज लुप्त हो जाता है। जिनकी कुंडलिनी जाग्रत नहीं भी होती है उनको भी यह सुरक्षा प्राप्त होता है कितु यदि वें अत्युग्र पाप में लिप्त हो जायें; देवोपासना, नित्य-नैमितिक यज्ञ-कमों को संपादन ना करें, वीर्यशक्ति का अपव्यय करें तो यह सुरक्षा घेरा कमजोर हो जाता है फलत: वे प्रेतों के प्रत्यक्ष विरोध के पात्र बन जाते हैं ।
मन और प्राण के आश्रय से ही सूक्ष्म आत्मा नाना प्रकार के दृश्य, रूपक को चित्रित कर मनुष्य को भरमाती रहती है । इनको तथ्य - अतीत से संबद्ध भी रह सकते हैं जो किसी विशेष प्रकार की चिंता, भावना, संवेदना को उभारने वाला हो; दुष्टात्मा मनुष्य को स्वप्नादि सूक्ष्म दृश्यों के द्वारा पाप के कष्टप्रद भोग की भी पूर्वसूचना देते हैं या प्रारब्ध-क्षय हेतु सूक्ष्मजगत की पापभूमियों का दर्शन कराते हैं। सूक्ष्मशरीर के वीभत्स, घृण्य, पापलिप्त क्षेत्र में भ्रमण कर, उनके निवासी दुष्ट प्रेतों द्वारा हिसित होकर, रति क्रियाओं में संलग्न होकर साधक अशुभ प्रारब्ध-भोग का क्षय करता है । स्थूल शरीर में रोग उत्पन्न करने वाली कई सूक्ष्मात्मा है जो अवसर पाते ही मनुष्य के जीवनी-तत्व में प्रवेश कर जाती है । सूक्ष्मजगत में खाँसी, सर्दी, जुकाम आदि अलग-अलग बीमारियों से ग्रस्त कई प्रेत हैं। ये जब किसी स्थूल प्राणी के कोश में