पृष्ट संख्या 40

के रूप में ही अनुभव किये जाते हैं। कुछ प्रेत का देह माँस का लोथरा से गन्ध निकलता रहता है । किसी का शरीर विष्ठा की तरह तो किसी का मूत्र, कीचड़, कचड़ा जैसा दुर्गन्ध वाला होता है कुछ प्रेत के शरीर से इत्र की तरह सुगन्ध भी निकलता है । प्रेत का पैर जमीन पर नहीं टिकता है । कुछ प्रेत का पैर उल्टा घूमा होता है- ये बड़े कष्ट में होते हैं। सूक्ष्मजगत के प्राणी की परछाई नहीं बनती है। कुछ ऐसी सूक्ष्मात्मा है जिसकी पलकें नहीं झपकती हैं- इस प्रकार की आत्मा शुभ और अशुभ दोनों ही प्रकार के हैं।


प्रेत-समुदाय में कोई सुखी देखे जाते हैं तो कोई अत्यधिक दुखी। पाप-पुण्य के अनुपात में, प्रक्कृति के अनुसार इनका आवास, आहार और जीवन काल निर्धारित होता है । सूक्ष्मजगत में विचरण करने वाले योगी अनुभव करते हैं कि वहाँ अंधकार के क्षेत्र में कई छोटी-छोटी झुग्गियाँ हैं, खंडहरनुमा मकान हैं, नदी-पर्वत-जंगल है, जहाँ गुफा, बिल, कदरा, घाट, बाग-बगीचों में अनेक प्रेत निवास करते हैं, किसी को आसानी से आहार प्राप्त हो जाता है तो कोई आहार-पानी के बिना तड़पता रहता है। कोई प्रेत वस्त्र धारण किये रहता है तो कोई वस्त्रहीन रहता है । नारकीय भूमि में भी कहीं साफ-सुथरी और ऊँची भूमि है जहाँ से पापपरायण प्राणी को यमदूत खून, पीब, पखाना, पेशाब के कुण्डों में ढकेल देते हैं। कोई प्राणी आग के समान तपते मरूस्थल में पड़ा जलता रहता है तो किसी के शरीर में कुछ-कुछ देर पर स्वत: आग प्रकट होती रहती है और उसे झुलसाती रहती है । कहीं बलशाली दुष्टात्माएँ कमजोर प्रेतों को कतार में खड़ा कर उन्हें दण्ड देती रहती हैं- उनके शरीर को तेज धार वाले अस्त्रों से, शीशों से खंड-खंड कर काट देती हैं तो कभी जलती भट्ठी में झोंक देती हैं। क्रूरता, हिंसा, दुष्टता सिखाने के लिए वहाँ मृत्यु का खेल खेला जाता है। कुछ प्रेत मिलकर एक-दूसरे पर तलवार से वार करते हैं। तीक्ष्ण शस्त्र से एक-दूसरे का गरदन उड़ाते हुए अंत में जो बच जाता है वह अपना गरदन खुद ही काट लेता है। प्राण के शरीर होने के कारण ये मर-मर कर फिर से जिन्दा हो जाते हैं। बहुत ऊँचे छत के नीचे


© Copyright , Sri Kapil Kanan, All rights reserved | Website with By :Vivek Karn | Sitemap | Privacy-Policy