पृष्ट संख्या 19

में विष्ठा-मूत्र कफ आदि के मिले होने का आभास होता है ।


  • 7. प्रेतबाधा से ग्रस्त मनुष्य पर किसी भी प्रकार के शिक्षा-उपदेश का प्रभाव पडता नहीं दिखाई देता है ।

  • 8. उनमें अनिद्रा, बेचैनी, तनाव, क्रोध आदि आवेशी भाव का अकारण अस्तित्व देखा जाता है ।

  • 9. प्रेत से प्रभावित व्यक्ति गलत सूचनाओं को पाता है। उसे भाँति-भाँति की मिथ्या भविष्यवाणियों से आक्रांत, भयभीत, सशकित, अवसादग्रस्त या गौरवान्वित कर सत्य-पथ से विचलित किया जाता है ।

  • 10. सही निर्णय पर प्रेत स्थिर नहीं रहने देता है ।

  • 11. एक ही बात को बार-बार सोचना ।

  • 12. बराबर दुर्घटनाग्रस्त हो जाना ।

  • 13. ऐसा लगे कि कोई साया हमेशा साथ-साथ चल रहा है, साथ-साथ खाना खा रहा है, सो रहा है ।

  • 14. नींद में चलनेवाला, बोलनेवाला ।

  • 15. प्रेत मनुष्य के पुण्य संकल्प को विचलित करने का प्रयत्न करता है। यदि कोई व्यक्ति प्रेत से प्रभावित है तो उससे प्रेत अपने मनमाफिक कमों को ही कराना चाहता है । इसके विपरीत यदि मनुष्य किसी साधु के पास जाता है या साधना करने का प्रयास करता है तो प्रेत रुष्ट होता है । वह . अधिकृत व्यक्ति के शुभसंकल्प को मोड़ने का हरसंभव प्रयास करता है। अवज्ञा होने पर अनिष्ट की धमकी भी देता है । आध्यात्मिक प्रगति करनेवाले साधक इस प्रकार की धमकियों का बहुधा श्रवण करते हैं ।

  • 16. प्रेतों का प्रत्यक्ष आवेश भी देखा जाता है। सूक्ष्म आसुरिक, पैशाचिक देवी-देवता मनुष्य के चित्त में आविश्य करते हैं । इस अवस्था में आवेशित मनुष्य अपना आपा भूला रहता है। उसकी बाह्य चेतना पर इन सूक्ष्म सत्ताओं का तत्काल प्रभाव देखा जाता है । ये अपने पुण्य के बल पर मनुष्यों के कुछेक संकटों की निवृति भी करते हैं । किसी को फूल देकर या पूजा-पाठ की विधि बताकर वे रोग-व्याधि से मुक्त करते हैं और बदले में अपने लिए पूजा की माँग करते हैं।

  • 17. प्रेतबाधा से ग्रस्त गृह में सामान भी गायब होते हैं। अभिचार-प्रेरित


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