सूक्ष्म सत्ता वस्तुओं के हेर-फेर करने में सक्षम होती हैं। ये विविध प्रकार की हरकतों को अंजाम देकर मनुष्य के हृदय में आतंक फैलाने की कोशिश करती है। थूक, विष्ठा, धूल, ककड-पत्थर, शीशा आदि अपवित्र, घातक पदाथों की वृष्टि भी कतिपय प्रेतबाधाओं में अनुभव किया जाता है। ऐसा नहीं है कि सूक्ष्म सत्ताएँ भौतिक स्तर पर प्रभावशाली नहीं होती हैं । वे हाथ-पैर को स्तंभित करने, दुर्घटना कराने में, देहधारी वस्त्रों को हिलाने-डुलाने में सक्षम रहती है । जिस प्रकार वह चित्त में अच्छी-बुरी भावनाओं की प्रेरणाएँ प्रक्षिप्त कर सकती है उसी प्रकार भौतिक वातावरण में बुरे कायों का उत्प्रेरक भी बन सकती है ।
- 18. ऐसा भी देखा गया है कि कोई व्यक्ति सूक्ष्म आत्माओं के प्रभाव से प्रस्त होने से सदैव अतृप्ति का अनुभव करते हैं। ऐसे व्यक्ति बहुत खाने पर भी भूखे ही रहते हैं ।
- 19.हालाँकि प्रेतों के उपर्युक्त क्रियाकलापों से यह तथ्य स्पष्ट है कि इनका कार्यक्षेत्र व्यापक है तथापि बहुतायत में इनका प्रभाव मानसिक स्तर पर देखा जाता है । मानसिक रूप से सदा बेचैन, शंका-संदेह से भरा व्यक्ति अनिद्रादि दोषों से विक्षिप्त, आवेश, अशांति आदि दुष्प्रभाव से भावित हुआ दृष्टिगोचर होता है ।
गुह्मवादी प्रेत के द्वारा उत्पन्न इस प्रकार के कुप्रभावों को समझने में समर्थ होते हैं । वे विविध प्रकार के मानसिक-प्राणिक व्याधि एवं असमान्यता के पीछे प्रेत के करतूतों को अपनी सिद्धि के बल पर जान लेते हैं । वे अनुभव करते हैं कि मनुष्यों को प्रेतबाधा चार कारणों से उत्पन्न होती है । कुछ सूक्ष्मात्माओं में काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद मत्सरादि में से किसी भी वृत्ति की गंदगी रहती है तो उसी विकार के आश्रय से वैसी ही वृत्ति वाली सूक्ष्मात्मा उसके भीतर उन-उन वासनाओं, लालसाओं को भड़काने में प्रयत्नशील रहती है । जब तक दत्तचित होकर वृत्ति को शुद्ध नहीं किया जाता है तबतक इनके आश्रयी सूक्ष्मात्माओं से निजात नहीं मिलती है । इनके प्रभावों को समझना साधक के लिए भी कठिन होता अधिकता होती है; जो अहकारी मदान्ध, ईष्र्यालु, हिंसक व छली-प्रपंची