गुजरते हुए पवित्र आचरणी साधुओं से द्वेष रखता है, अपनी हिंसक वृत्ति से उन्हें नष्ट कर डालना चाहता है । अत: ऐसे क्षेत्र के संपर्क में आने पर योगी प्रेतबाधा का अधिक अनुभव करते हैं- वे अपने मन में इन प्रेतों को हिंसा, ईष्या, द्वेष, डाह और बदला लेने की भावना को उकसाते हुए देखते हैं । इसी प्रकार वेश्यालय या भोग-विलास के अन्य स्थलों पर कामी पिशाचात्माओं की सक्रिय उपस्थिति योगी को तंग करती है । जहाँ मनुष्य कामोत्तेजक धुन पर नाचते-गाते रहते हैं वहाँ द्रष्टांगण बहुत सारे प्रेतात्माओं को भी सूक्ष्मरूप से नाचते-गाते, थिरकते हुए देखते हैं । अधोगति को प्राप्त प्रेत शरीर के नवद्वारों से निकलने वाले मल- विष्ठा, मूत्र, वीर्य, गूजू, पसीना आदि का सूक्ष्म भाग भक्षण करते हैं। अत: बहुत सारे प्रेत शौचालय, पेशाबघर, मल-संग्राहक कक्षों में रमण करते रहते हैं। बदबूदार गन्दे स्थान पर अपवित्र आहार और जल को ग्रहण करने वाले प्रेत के लिए पवित्र स्थल पर निवास करना कष्टकारी होता है । यही कारण है कि सूक्ष्मदेही को दुष्ट बनाने के लिए जब बड़े-बड़े असुर उसे प्रताडित करते रहते हैं तो उसे अवज्ञा करने पर पवित्र स्थानों में फेंक देने की धमकी देते हैं । गंगा नदी, मंदिर, बगीचा, साधु-सन्त के वास आदि शुचि स्थल पर फेंक देने का भय दिखा कर नवागंतुक प्रेत को शैतान गुस्साते हुए पवित्र जगह पर फेंक देता है । दूध का घड़ा, गौशाला, मधु का घट, फूलवारी, मिठाई–पात्र आदि पवित्र जगह पर अपवित्र प्रेत की दुर्गति हो जाती है । अंधकार में आनन्द मनाने वाले प्रेत प्रकाश को पाकर जलने लगते हैं । इसी प्रकार पवित्र स्थलों पर निवास करने वाली सूक्ष्म सत्ताओं के लिए अपवित्र स्थलों पर निवास करना असह्य होता है।
दैवीय एवं आसुरी प्रकृति के बीच जब युद्ध छिड़ता है तो दोनों ही सत्ता अपने-अपने पवित्र एवं अपवित्र आश्रय में स्वयं को सुरक्षित समझती है । जब योगी कुपित होकर अपने पर आक्रमण करते प्रेतों को मारने के लिए उद्धत होता है तब प्रेतगण परिवेश में उपस्थित रहने वाले मल कुंड में पलायन कर जाते हैं। वे जानते हैं कि उन्हें मारने के लिए योगी इन अपवित्र स्थलों पर नहीं जा सकते हैं । इसी प्रकार योगिजन अनुभव करते हैं कि कई प्रेत उनके आवास-स्थल पर उपस्थित