संकल्प-विकल्प करने वाला मन प्राण में लीन हो जाता है । उसकी जितनी भी चेतन वृत्ति रहती है वह अवचेतन कोश में चली जाती है और अवचेतन की जो वृत्ति रहती है- जिसका अभ्यास वह बचपन से किया रहता है या जो उसके जन्म-जन्मांतर के अवचेतन कोश में संरक्षित रहती है- वह चेतन बन जाती है । मनुष्य के समक्ष बचपन से लेकर जीवन पर्यन्त किये गये छोटे से छोटे पाप और पुण्य कमों का स्मरण चलचित्र की भाँति सजीव हो उठता है । जीवन भर वह जिन वृत्तियों का पोषण करता रहा है उन्हीं वृत्तियों के देव उसके सामने उसकी आत्मा पर अधिकार करने हेतु उपस्थित होते हैं। जो पापपरायण व्यक्ति हैं वे यमदूतों के क्रूर, भयानक चेहरों को अपने इर्द-गिर्द मैंडराते अनुभव करते हैं । अपने मरे हुए पूर्वजों को देखते हैं; उन्हें अनुभव होता है कि वे किसी विष्ठा के कुंड में, रक्त, पीब आदि के कुंड में गिराये जा रहे हैं; उन्हें कोई जला रहा है, काट रहा है- गिद्ध, कौआ आदि उन्हें नोच रहे हैं । इस प्रकार को दृश्य का अनुभव मनुष्य मृत्यु से कुछेक दिन पूर्व स्वप्न या जाग्रत अवस्था में प्राप्त करने लगते हैं । यदि वह देखे कि कोई स्त्री या पुरुष आत्मा उसके पास काम-क्रिया करने के लिए उपस्थित है तो ये सभी लक्षण उसकी नक-प्राप्ति की सूचना देते हैं। मरने से पूर्व ही अपनी अधोगति देख, भय-विषाद उत्पन्न करनेवाले दृश्यों को देखकर जीव चौंकता रहता है, क्रन्दन कर, शोक-मोह से ग्रसित हुआ भयाक्रान्त रहता है। वहीं जो पुण्यात्मा हैं वे यमदूतों के सौम्य स्वरूप का दर्शन करते हैं वे अपने इर्द-गिर्द तेजवन्त पितरों, देवताओं को मैंडराते हुए अनुभव करते हैं । सतीगुण के प्रभाव से उनका चित्त शोक-मोह, राग-द्वेष से रहित शान्त, सुखी, निस्पृह रहता है । वे मृत्यु पूर्व सूर्य, चन्द्रमा, बाग–बगीचा, मन्दिर, देवी-देवतादि का दर्शन करने लगते हैं । अपने प्राप्तव्य लोक के मित्रों, अनुचरों का दर्शन करते हैं । दिव्य सूक्ष्मात्माओं को उपहार और आशीष देते हुए अनुभव करते हैं। उनके द्वारा अपने सत्कार्य की सराहना को सुन जीव पुलकित होता है। कुछ विशेष कृपापात्र पुण्यात्मा के लिए देवदूत विमान ले कर आते हैं। ऐसे विरले पुण्यात्मा जगत की अज्ञानता पर ठहाका लगाकर पुण्य लोक की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। किंतु जो