ऐसे कई उत्पात किसी गृह विशेष में दिखलाई पड़ते हैं । इनके गंभीर परिणाम के अंत में उस परिवार के कुछेक लोगों की असामयिक मृत्यु भी देखी जाती है । अभिचार का मारण यदि निर्विध्न संपन्न हो जाता है तो प्रभावित व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है । ऐसी मृत्यु असामयिक होती है जिसे प्राप्तकर जीवात्मा सूक्ष्मजगत में भटकती है । जो आत्महत्या या किसी दुर्घटनावश अकाल-मृत्यु को प्राप्त करते हैं वे अपने बचे हुए पार्थिव-जीवन काल की अवधि तक सूक्ष्मजगत में भटकते रहते हैं । कतिपय गुह्मवादी ऐसे प्रेत को अपने कब्जे में कर लेते हैं- उससे सेवक के समान काम लेते हैं । ऐसा भी देखा जाता है कि वे इस प्रकार की भटकती हुई सूक्ष्मात्मा को किसी शाख पर कील से ठोक कर कैद कर लेते हैं इस अवस्था में प्रेत काफी कष्ट का अनुभव करता है। अभिचार करने वाले व्यक्ति भी दुष्ट प्रकृति को प्रेत को वशीभूत कर अपना कार्य साधते हैं। अभिचार का प्रभाव शरीर और मन दोनों पर पड़ता है । इसकी क्रिया मानसिक और भौतिक स्तर पर संपादित की जाती है । शरीर एवं प्राण को प्रभावित करने के क्रम में अभिचारक स्थूल पदार्थों का प्रयोग करते हैं । ऐसा देखा जाता है कि अभिमन्त्रित जल या खाद्य पदाथों का भक्षण कराकर किसी मनुष्य पर अभिचार किया जाता है । वस्त्र, केश, चित्र या अन्य स्मृति चिह्न, उपभुक्त वस्तुओं का भी अभिचार कर्म में प्रयोग होता है । किसी गृह में उपस्थित हड्डी, ककाल, चितावशेष या विशेष प्रकार को काँटा पत्र या फूल को आश्रय से भी अभिचारजनित प्रेतबाधाओं का अस्तित्व देखा जाता है। गंगाजल, तुलसी पत्र जैसी पवित्र वस्तुएँ (जिसका प्रयोग हर प्रकार की प्रेत बाधाओं के शमन में होता है) को भी अभिचारित कर प्रदूषित किया जा सकता है । अवसर प्राप्त होने पर अभिचार-कर्ता गंगाजल, दूध, मधु, वृत, पुष्प, अक्षत, दूर्वादलादि पवित्र सामग्रियों को भी मन्त्र-प्रेरित कर अशुद्ध और हानिप्रद बना देते हैं। अभिचारित पूजन सामग्रियों से पूजा करने पर उपासक को किंचित भी पुण्य प्राप्ति नहीं होती है अपितु पुण्यनाश का भय रहता है । अभिचार पशु-पंछियों पर भी किया जाता है एवं पशु-पंछियों की सहायता से साधक पर भी किया जाता है। सूक्ष्मजगत की दुष्ट आत्माएँ योगी को तंग