पृष्ट संख्या 15

नरककाल, सींग, चर्म, केश, खुर, पंख, काँटा, नख, दाँत, आदि अंगों के आश्रयीभूत कई प्रेतात्माओं को सिद्ध करने वाले उन-उन अंगों का प्रयोग करते हैं । किसी भी कोटि की सूक्ष्म आत्मा क्यों ना हो उनकी सिद्धि पृथ्वी पर चमत्कार का सृजन करने में सर्वथा सक्षम है। सूक्ष्म शरीर होने के कारण प्रेत कहीं भी आने-जाने में सक्षम रहता है । उसके लिए आग-पानी में गमन करना उतना ही सहज है जितना कि धरती और आकाश में गमन करना । धरती के नीचे जाना हो या किसी दीवार, पर्वत, पत्थर आदि स्थूल अवरोधक को पार करना, प्रेत के लिए यह कार्य संकल्पमात्र में संपन्न हो जाता है । एक ही क्षण में वह संकल्प कर एक देश से दूसरे देश में प्रकट हो जाता है, मनचाहे रूप- चाहे वह हाथी, घोड़ा, कुत्ता, बिल्ली आदि पशु रूप हो या कौआ, मैना आदि पक्षी रूप या किन्हीं देवी-देवता का ही रूप क्यों ना ही- वह संकल्पमात्र से उन रूपों में प्रकट हो जाता है। चाहे कोई मृत व्यक्ति हो या जीवित व्यक्ति प्रेत उनके ही समान, हू-ब-हू आकृति में स्वयं को प्रस्तुत कर साधक के चित्त की परीक्षा लेता है। मात्र किसी प्राणी की आकृति ही नहीं अपितु अपने संकल्प से सूक्ष्मदेही विभिन्न कालखंडों की सारी परिस्थिति को एकसाथ प्रकट करने में समर्थ रहता है । विगत स्मृतियों के अनुसार वह मकान, ऑगन, बगीचा-बावली, खेत-खलिहान का चित्रण कर उन-उन काल को मित्र, भाई, कुटुम्ब आदि को संग व्यतीत जीवन-व्यवहार को दृष्टिपटल पर उपस्थित कर किसी विशेष प्रकार की भावना, चिंता, संवेदना को उत्पन्न करने का प्रभावकारी प्रयास करता है ।


मनुष्य के मन में उठते नानाविध भावों का अध्ययन प्रेत संकल्पमात्र से कर लेता है। मनुष्य की स्मृति, रुचि, कल्पना, चिंता आदि को भाँपकर सूक्ष्मशरीरी प्रेत उसके सत्व की सहज शांति को भंग करने हेतु अतिशय उद्यम करता है । निद्रित, अद्धनिद्रित हो या स्थिर, शांत एवं जाग्रत अवस्था- मौका मिलते ही प्रेत साधक की मानसिक अभिरुचियों, संवेदनाओं, आसक्तियों, प्राणिक आवेश, वासना, स्पृहा, ललक को उभारता है । इस कार्य हेतु वह किसी प्रतीक का आश्रय लेता है या सीधे मानसिक, प्राणिक, भौतिक प्रेरणाएँ ही प्रक्षिप्त करता है। ऐसा ही प्रभाव बुद्धि पर


© Copyright , Sri Kapil Kanan, All rights reserved | Website with By :Vivek Karn | Sitemap | Privacy-Policy