तो उसे आपको तंग करने का अधिकार मिल जाता है । जो साधक अपने स्थूल शरीर से निकलकर सूक्ष्म शरीर से सूक्ष्मलोकों में विचरण करते हैं उन्हें भी इस अनुशासन का पालन करना चाहिए । सूक्ष्मलोक मे पार्थिव लोक के ही समान भाँति-भाँति के उपासना स्थल हैं । यदि कोई प्राणी अपने इष्ट की प्रतिमा के समक्ष उपासना अर्पित कर रहा हो तो उस समय उसे अपने समक्ष किन्हीं विजातीय आत्मा की उपस्थिति रास नहीं आती है। साथ ही ऐसे अवसर पर उपास्य इष्ट के भी कुपित होने की संभावना रहती है । अत: निष्प्रयोजन, बिना विचार किये सूक्ष्मजगत के उपासना स्थलों में प्रवेश नहीं करना चाहिए। स्थूल जगत में भी काल एवं स्थान विशेष में सूक्ष्म शक्तियों का उपद्रव घटता-बढ़ता है । सूक्ष्म दृष्ट्रया यह लखा जाता है कि किसी निर्जन, अंधेरे सुनसान, भग्न, अपवित्र आवास में प्रेतों का निवास होता है । किसी नदी, तालाब के घाट, बाग-बगीचा, पुल, बाँध, अर्चन-स्थल, वृक्ष आदि पर प्रेतों का निवास होता है । दुर्गन्धित स्थल, खेतों के बीच फटे दरारों, बिलों, गह्वरों, गुफाओं, कन्दराओं, जलाशयों, पर्वत श्रृंखलाओं, चक्रवातों एवं अन्तरिक्ष में भी प्रेतों का निवास देखा जाता है । काल-विशेष में भी सूक्ष्म सत्ताओं की सक्रियता अधिक देखी जाती है । अर्द्धरात्रि के बाद का समय तो इनके स्वतंत्र रमण का है ही इसके अतिरिक्त संध्या के प्रदोषकाल में, गर्मी के दोपहर में, शीतकाल के धुंध और कुहासों से भरे, मेघाच्छादित ऐसे समय में जब सूरज का प्रकाश सीधा नहीं आता हो एवं ग्रहण काल में सूक्ष्मात्मा की सक्रियता बढ़ जाती है । सद्य:मृत्यु को प्राप्त सूक्ष्मात्मा भी अपने पार्थिव-जीवन के गृहादि परिवेश में सक्रिय देखी जाती है। श्राद्ध-तर्पण आदि पितृ-पर्व पर भी इनकी सक्रियता देखी जाती है । जहाँ पर हिंसा, व्यभिचारादि अनैतिक कार्य होते हैं वहाँ पर इन वृत्तियों का समर्थन करनेवाले प्रेत की सक्रियता अधिक होती है । कसाईखाना, युद्धस्थल आदि पर जहाँ प्राण अत्यधिक वेदना से देहत्याग करता है वहाँ इन सद्य:मृत्यु को प्राप्त हुए प्राणियों का प्रेत त्रासजन्य डाह, क्रोध, हिंसा से भरा होता है । वह अपने विगत के मानुष रूप में आकर अपने निकट से