पृष्ट संख्या 42

साधिकाओं को भ्रमित करने के लिए पुरुष-प्रेत स्त्री का रूप लेकर । समीप आता है । कामवासना को भड़काने में प्रेत का शिशु रूप भी सक्रिय होता है । बाल एवं पौगण्ड अवस्था वाला प्रेत अति शक्तिशाली होता है और प्रेतों की टोली का नेतृत्व करता है । यह बच्चा बनकर ही शरीर का स्पर्श करता है और देखते ही देखते काम विकार से मन को क्षुब्ध कर देता है । अत: ऐसे 'शिशु-प्रेत' से सावधान रहना चाहिए । काम-वासना में जो मनुष्य अतिशय लिप्त हैं वे तो पिशाच के उपयुक्त पात्र हैं ही । इनके भाव, विचार, दृष्टि, स्पशदि क्रिया में तो सूक्ष्म कामी आत्माओं की लिप्सा ही पूरी होती है। ऐसे मनुष्य को प्रलोभित करने के लिए सूक्ष्मजगत की सत्ता को कुछ अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ता है किंतु जो व्यक्ति इस दुर्जय वासना को जीतने का प्रयास करता है उसे ये परीक्षा की हर कसौटी पर कसते हैं । भौतिक रूप में भी परिवेश के अन्य स्त्री-पुरुषों में विषय-प्रवृत्ति की प्रेरणा कर प्रेत उसे साधक-साधिकाओं के प्रति आकृष्ट होने का संयोग बनाते हैं । जब कामदेव अपने प्रत्येक अस्त्र-शस्त्र से सज्जित होकर साधक की परीक्षा ले रहे हों तब साधक को अपने आहार-विहार, शय्या, साधनादि का समुचित ख्याल रखना चाहिए । इन परिस्थितियों में यदि कामी मनुष्यों का संसर्ग प्राप्त हो जाय; उनका आहार ग्रहण किया जाय: साधक मन-प्राण से कामुक चिन्तन में रस लेने लगे तो कामोत्तेजना भड़काने के लिए प्रेतों का किया जा रहा कार्य सफल हो जाता है ।


किसी भी प्रकार के पापपूर्ण संस्कार के आधार पर प्रेतों द्वारा प्रदान किया जा रहा क्लेश असाध्य हो जाता है । जीव के द्वारा किये गये छोटे से छोटे पाप को कारण ही पापपरायण प्रेत को जीव को चित्त में घुसकर अपना प्रभाव उत्पन्न करने का अधिकार मिल जाता है । अत: वे काम विकार के अलावा भी अन्य प्रकार के साधारण पाप कर्म करने की भी प्रेरणा करते रहते हैं । यदि साधक का प्रेत के संग संवाद उपस्थित हो गया हो तो ये सीधे प्रत्यक्ष होकर सुझाव देते हैं। यदि साधक काम, क्रोध, छल-कपट से भरे किसी दुष्ट, विषयी मनुष्य को छूता है तो दुष्टात्मा कहती -" ये पुण्य हुआ" यदि वह अपना हाथ हटा लेता है तो


© Copyright 2025, Sri Kapil Kanan, All rights reserved | Website with By :Vivek Karn | Sitemap | Privacy-Policy