पृष्ट संख्या 16

भी उत्पन्न किया जाता है । आप जिसे मन का सहज व्यापार समझते हैं, विचारों की प्राकृतिक श्रृंखला समझ रहे होते हैं; वह संभव है कि इन्हीं की प्रेरणाओं से चित्त में उत्पन्न हो रहा हो । जब साधक शांतचित्त हो निद्रामग्न होना चाहता है तब उसके मन में नाना प्रकार के संकल्पों को उत्पन्न कर भय, संदेह, चिंता आदि के उत्पादक भाव, विचार, कल्पना को अतिरंजित कर प्रेत उसके मानसिक संतुलन को नष्ट करने का प्रयास करता है । ऐसी स्थिति में यदि सुरक्षा हेतु समुचित प्रतिकार ना किया जाय तो संकट उत्पन्न हो सकता है । संभव है कि प्रेत के कुचक्र का शिकार होकर कोई व्यक्ति मानसिक संतुलन खो बैठे। एकबार जिसके मन-बुद्धि का संतुलन बिगड़ जाता है, प्राण आवेशित हो जाता है जिससे उन्माद, उग्रता, बर्बरता का विक्षिप्तकारी प्रभाव दिखाई पडता है तो उसके चित्त पर । दुष्ट प्रेत को पूरी तरह काबिज होने में सहूलियत होती है । साधकों को साधना-क्रम में प्रेतबाधाओं का या प्रेत से उत्पन्न कुप्रभावों की कठिनाईयों का किसी ना किसी प्रकार स्पर्श प्राप्त होता ही है जिसका वे आचार्य के अनुशासन में रहकर प्रतिकार करते हैं साथ ही सामान्य व्यक्तियों में भी प्रेत से कई प्रकार की असामान्यता एवं विकृति उत्पन्न होती है । इनके प्रभावों को पढ़ने में गुह्मवादी सक्षम होते हैं । चूँकि सूक्ष्म सत्ताओं का दर्शन, स्पर्शन सभी नहीं अनुभव करते हैं कुछ विशिष्ट लक्षणों से युक्त मनुष्य ही इनका साक्षात्कार करता है और इनके उद्देश्यों का पूर्तिकारक यंत्र बनता है तो स्वाभाविक रूप से इन बाधाओं से जूझेने वाले व्यक्ति के लक्षण सामुद्रिक शास्त्र, ज्योतिष आदि के द्वारा भी अनुमेय हो सकते हैं । हस्तरेखा के लक्षणों से भी यह पता लगाया ला सकता है कि जातक प्रेतबाधा से ग्रस्त हो सकता है या नहीं । हस्तरेखा में पायेजाने वाले निम्नांकित चिह्न प्रेतबाधा की संभावना को दर्शाते हैं :-


  • 1. दूषित मस्तिष्क रेखा- यदि मस्तिष्क रेखा द्वीप, क्रॉस से युक्त हो, चन्द्र पर्वत की ओर जीवन रेखा के समानान्तर अधिक झुकी हो, लहरदार, टूटी-फूटी हो ।

  • 2. खाली हथेली को बीच का भाग (राहु क्षेत्र) अधिक धंसा हो ।

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