क्रोध, आवेश से चित्त को दूषित करने का प्रयत्न प्रेतों के द्वारा सतत किया जाता है । छोटी-छोटी बातों में भी संदेह, चिंता, शंका, भय उत्पन्न कर प्रेत चित्त को विक्षुब्ध करता रहता है । मोहवृत्ति को जगाने के लिए भी नाना प्रकार की भावुक प्रेरणाओं का संचार किया जाता है । सूक्ष्मजगत की सत्ता साधक के समक्ष स्वयं को उसकी संतति, माता-पिता, भाई-बंधु के रूप में प्रस्तुत करती है । इनमें से कई पूर्वजन्मों के संबंध का हवाला देकर मोह जगाने का प्रयत्न करती हैं । इनका उद्देश्य स्वयं को साधक का हितैषी साबित कर अपना काम साधना होता है । ये चाहती है कि साधक अपने तप का प्रयोग उसका उद्धार करने, उसे आहार देने, उसकी उपासना करने के लिए करे । यदि इनके दुखी जीवन पर दयाद्र होकर तपस्वी साधक कुछ इनकी सहायता करने की चेष्टा करते हैं तो इन कमों से उनके तप की हानि होती है । पापों का दंड भोग रहे कुछ प्रेतों को तभी मल-मूत्र, थूक आदि अपवित्र पदार्थ मिलाये जाते हैं । साधक को यदि इस तरीके से आहार देने के लिए किन्हीं सूक्ष्मात्मा का संकेत प्राप्त हो तो उसकी अवहेलना करनी चाहिए भले वह कोई परिचित अथवा अपने मृतक सगे-संबंधी ही क्यों न हो । मनुष्य यदि मोहवश अपने ही कुल के मृतक सदस्यों या अन्य सूक्ष्मदेही को अपनी उपासना दे, उनका राबर ध्यान चिंतन करे, उनके निमित आहार, वस्त्र, शय्या आदि का प्रबन्ध करे तो वह गंभीर संकट में फंस सकता है । जिन्हें आहारादि प्रदानकर उपास्य मनुष्य तो मृत्यु के बाद प्राप्त होने वाली गति को जान नहीं पाते हैं । वे समझते हैं कि उनके दादा-परदादा, कुटुम्ब-परिजन सब भले इंसान ही थे। मृत्यु के बाद भी वैसे ही होंगे । कितु सत्य इतना ही नहीं है। जिन्हें हम पृथ्वी पर अच्छे व्यक्ति समझते हैं वे आवश्यक नहीं है कि सूक्ष्मलोक में भी अच्छे में ही गिने जाएँ। जब साधक सूक्ष्मलोकों की यात्रा करने में समर्थ होता है तब पृथ्वीपुत्रों की मृत्योपरांत गति देखकर आश्चर्यचकित हो जाता है। वह पाता है कि पृथ्वी पर बडे-बड़े नाम-यश वाले, पवित्र, महान और परोपकारी कहे जाने वाले व्यक्ति भी अधोगति को प्राप्त करते